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चीजोंग कीपाओ: चीनी फैशन का सदियों पुराना सफर और विकास

by Cheongsamology / रविवार, 03 अगस्त 2025 / Published in Blog

चींगसम या किपाओ, जैसा कि इसे आमतौर पर जाना जाता है, चीन की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उसके फ़ैशन के विकास का एक जीवंत प्रतीक है। यह एक साधारण मंज़ू वेशभूषा से आधुनिक सुंदरता और वैश्विक पहचान का प्रतीक बन गया है। इस परिधान का विकास चीन के सामाजिक, राजनीतिक और कलात्मक परिवर्तनों की कहानी बयां करता है, जो बताता है कि कैसे एक पारंपरिक पोशाक ने समय के साथ खुद को ढाला और दुनिया भर में सराही गई।

1. चिंग राजवंश का मूल: ‘चांगपाओ’ से ‘किपाओ’ तक

चींगसम का इतिहास चिंग राजवंश (1644-1911) से जुड़ा है, जब मंचूरियाई लोग चीन पर शासन करने आए थे। मूल रूप से, चींगसम का पूर्ववर्ती ‘चांगपाओ’ (長袍) था, जो मंचू पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा पहनी जाने वाली एक लंबी, ढीली और सीधी पोशाक थी। यह वेशभूषा घुड़सवारी और दैनिक गतिविधियों के लिए व्यावहारिक थी। पुरुषों के चांगपाओ में अक्सर घोड़े के खुर के आकार की कफ़ होती थी, जो ठंडी हवा से बचाने के लिए होती थी, जबकि महिलाओं के चांगपाओ सादे या साधारण अलंकरण के साथ होते थे।

समय के साथ, चांगपाओ ने मंचू कुलीनों और शाही दरबार में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। ‘किपाओ’ (旗袍) शब्द का अर्थ ‘बैनर गाउन’ है, जो आठ बैनरों (बकी, मंचू समाज की प्रशासनिक और सैन्य इकाइयाँ) से जुड़ा है। मंचू महिलाएं, जिन्हें ‘बैनर लोग’ कहा जाता था, इस प्रकार की पोशाक पहनती थीं। हालांकि, यह वर्तमान चींगसम से काफी अलग थी – यह ढीली, सीधी कट वाली थी, जिसमें उच्च कॉलर होता था और पूरे शरीर को ढँकती थी, जिससे शरीर की आकृति स्पष्ट नहीं होती थी। इसका मुख्य उद्देश्य विनम्रता और गरिमा बनाए रखना था।

2. 20वीं सदी की शुरुआत: शंघाई का प्रभाव और पश्चिमीकरण

20वीं सदी की शुरुआत ने चीन में बड़े पैमाने पर सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल देखी, जिसने फ़ैशन को भी प्रभावित किया। 1912 में चिंग राजवंश के पतन और गणतांत्रिक युग की शुरुआत के साथ, चीन पश्चिमी विचारों और जीवनशैली के प्रति अधिक खुला हो गया। शंघाई, एक उभरते हुए महानगर और फ़ैशन केंद्र के रूप में, चींगसम के परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था।

1910 और 1920 के दशक में, छात्र और बुद्धिजीवी, विशेष रूप से शंघाई में, पश्चिमी कपड़ों के रुझानों से प्रभावित हुए। महिलाएँ शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में अधिक भूमिका निभाने लगीं, जिससे उनके कपड़ों में अधिक स्वतंत्रता और व्यावहारिकता की मांग बढ़ी। चांगपाओ ने धीरे-धीरे एक नया रूप लेना शुरू किया:

  • शिथिलता से फिटिंग की ओर: पोशाक कम ढीली होने लगी, और शरीर की आकृति को थोड़ा दिखाना शुरू किया।
  • छोटे हेमलाइन: पहले जो टखनों तक लंबी होती थी, वह धीरे-धीरे पिंडली तक उठने लगी।
  • आस्तीन में बदलाव: व्यापक आस्तीन पतली और छोटी होने लगीं, कभी-कभी कोहनी तक।
  • साइड स्लिट्स का उद्भव: चलने की सुविधा के लिए पहली बार साइड स्लिट्स दिखाई दिए।

इस अवधि में, चींगसम ने एक आधुनिक चीनी महिला की पहचान का प्रतीक बनना शुरू किया, जो परंपरा और आधुनिकता दोनों को अपना रही थी। यह पश्चिमी शैली की स्कर्ट और ब्लाउज की तुलना में अधिक चीनी थी, फिर भी पारंपरिक चांगपाओ की तुलना में अधिक समकालीन थी।

3. 1930 के दशक का स्वर्ण युग: परिष्कृत सुंदरता और आधुनिकता

1930 का दशक चींगसम के विकास का स्वर्ण युग था। इस अवधि के दौरान, चींगसम ने अपनी सबसे प्रतिष्ठित और परिष्कृत आकृति प्राप्त की, जो आज भी इसकी पहचान है। शंघाई में पश्चिमी कटाई तकनीकों और फ़ैशन प्रभावों के साथ इसका तालमेल हुआ। इस दशक में चींगसम एक तंग-फिटिंग, ऊँचे-कॉलर वाली पोशाक बन गई, जिसमें साइड स्लिट्स कमर या जांघों तक पहुँचते थे।

यह बदलाव कई कारकों से प्रेरित था:

  • फ़ैशन पत्रिकाएँ और फ़िल्में: चीनी और हॉलीवुड फ़िल्मों की ग्लैमरस अभिनेत्रियाँ चींगसम को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण थीं।
  • शंघाई की संपन्नता: शहर की बढ़ती समृद्धि ने महिलाओं को रेशम, साटन, ब्रोकेड और वेलवेट जैसे महंगी सामग्री से बने चींगसम पहनने में सक्षम बनाया।
  • पश्चिमी प्रभाव: पश्चिमी बॉल गाउन और इवनिंग वियर के प्रभाव ने चींगसम को औपचारिक और ग्लैमरस अवसरों के लिए उपयुक्त बनाया।

इस दशक में चींगसम एक आरामदायक और सुरुचिपूर्ण पोशाक के रूप में विकसित हुई, जिसमें हर महिला के शरीर के अनुसार कस्टम-फिटिंग पर जोर दिया गया था। इसने चीनी सुंदरता के आदर्शों को पूर्णता से दर्शाया: विनम्रता और लालित्य का एक संतुलन।

तालिका 1: 1930 के दशक के कीपाओ की प्रमुख विशेषताएँ

विशेषता विवरण
कॉलर उच्च और कसकर फिट होने वाला मैंडरिन कॉलर, जो गर्दन को सुंदरता से ढँकता था।
फिटिंग शरीर को गले लगाने वाली, फिगर-हगिंग फिटिंग, जो कमर और कूल्हों को उभारती थी।
साइड स्लिट्स ऊँची साइड स्लिट्स (आमतौर पर जांघ तक), जो गति की स्वतंत्रता प्रदान करती थीं और पैर को खूबसूरती से दिखाती थीं।
सामग्री रेशम, साटन, ब्रोकेड, वेलवेट, शिफॉन और क्रेप डी चाइन जैसी उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री।
आस्तीन लघु, कोहनी तक या पूरी आस्तीन, अक्सर फिटिंग वाली और कफ़ के साथ।
बटन/लूप पारंपरिक चीनी फ्रॉग-लूप बटन (पैनकौ) जो कॉलर से कंधे तक या पूरी तरह से साइड में लगते थे।
सजावट जटिल कढ़ाई, बीडिंग और पाइपिंग का उपयोग।

4. 1940-1960 के दशक: परिवर्तन और अनुकूलन

1940 के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध और चीनी गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा, जिससे चींगसम के डिज़ाइन पर भी असर पड़ा। युद्ध के दौरान, कपड़े की कमी और व्यावहारिक जरूरतों के कारण चींगसम के डिज़ाइन सरल हो गए। कम सजावट और अधिक टिकाऊ सामग्री का उपयोग किया गया। हेमलाइन कुछ हद तक ऊपर और नीचे दोनों तरफ़ जाती रही, जो उस समय के फ़ैशन और सामग्री की उपलब्धता पर निर्भर करता था।

1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद, मुख्य भूमि चीन में चींगसम का भाग्य बदल गया। इसे पूंजीवादी और बुर्जुआ प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा और इसे पहनना हतोत्साहित किया गया। सांस्कृतिक क्रांति (1966-1976) के दौरान, यह लगभग पूरी तरह से गायब हो गया।

हालांकि, इसी समय, चींगसम हांगकांग में एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में पनपता रहा। मुख्य भूमि चीन से पलायन करने वाले दर्जियों और फ़ैशन डिज़ाइनरों ने अपनी कला को हांगकांग ले लिया। वहां, चींगसम को दैनिक उपयोग के लिए अधिक व्यावहारिक बनाया गया। ज़िपर्स ने पारंपरिक फ्रॉग-लूप बटन की जगह ले ली, और कपास और रेयॉन जैसी अधिक किफायती सामग्री का उपयोग किया गया। हांगकांग चींगसम ने एक आरामदायक और बहुमुखी पोशाक के रूप में अपनी जगह बनाई, जो कामकाजी महिलाओं और गृहिणियों दोनों के लिए उपयुक्त थी। इसने हांगकांग सिनेमा में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की, जिससे इसकी वैश्विक पहचान मजबूत हुई।

5. 1970 के दशक से वर्तमान तक: पुनरुत्थान, वैश्विक पहचान और आधुनिक व्याख्याएँ

1970 के दशक के अंत में और 1980 के दशक की शुरुआत में चीन में आर्थिक सुधारों के साथ, चींगसम ने मुख्य भूमि में धीरे-धीरे वापसी करना शुरू किया। इसे फिर से एक औपचारिक और उत्सव की पोशाक के रूप में देखा जाने लगा। 1990 के दशक और 21वीं सदी की शुरुआत में, चींगसम को वैश्विक फ़ैशन मंच पर एक नई पहचान मिली।

  • फ़िल्मों का प्रभाव: ‘इन द मूड फॉर लव’ (2000) जैसी फ़िल्मों ने चींगसम की सुंदरता और कालातीत अपील को अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के सामने प्रदर्शित किया, जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ी।
  • डिज़ाइनर पुनर्व्याख्याएँ: आधुनिक फ़ैशन डिज़ाइनरों ने चींगसम को समकालीन सौंदर्यशास्त्र के साथ फिर से परिभाषित करना शुरू किया। उन्होंने विभिन्न कपड़े, कट और अलंकरणों का प्रयोग किया, जिससे चींगसम पश्चिमी वियर के साथ फ्यूज़न में भी दिखाई देने लगी।
  • विविध उपयोग: आज, चींगसम को औपचारिक गाउन, दुल्हन की पोशाक, कॉकटेल ड्रेस और कभी-कभी आकस्मिक वियर के रूप में भी देखा जाता है।
  • शैक्षिक और सांस्कृतिक प्रयास: Cheongsamology.com जैसी वेबसाइटें चींगसम के इतिहास, सांस्कृतिक महत्व और विकास का अध्ययन और दस्तावेजीकरण करती हैं, जो इसके विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में मदद करती हैं।

आधुनिक चींगसम में उच्च या निम्न कॉलर, विभिन्न आस्तीन की लंबाई, और हेमलाइन की विस्तृत श्रृंखला हो सकती है। यह अब केवल पारंपरिक रेशम और कढ़ाई तक ही सीमित नहीं है; चमड़ा, डेनिम, बुना हुआ कपड़ा और डिजिटल प्रिंट जैसी नई सामग्री का भी उपयोग किया जाता है। यह चीनी विरासत और वैश्विक फ़ैशन के बीच एक पुल के रूप में खड़ा है, जो बताता है कि कैसे एक पोशाक अपनी जड़ों को बनाए रखते हुए समकालीन बन सकती है।

तालिका 2: समय के साथ चींगसम/कीपाओ की सामग्री और शैली में बदलाव

काल मुख्य सामग्री शैलीगत विशेषताएँ
चिंग राजवंश (17वीं-19वीं सदी) कपास, लिनन, साधारण रेशम। ढीली, सीधी कट, लंबा, पूरे शरीर को ढँकने वाली, चौड़ी आस्तीन, कोई स्पष्ट फिटिंग नहीं।
1920 के दशक रेशम, ब्रोकेड, साटन। कुछ हद तक फिटिंग वाली, कम चौड़ी आस्तीन, थोड़ी ऊंची हेमलाइन, छोटी साइड स्लिट्स का उद्भव।
1930 के दशक उच्च गुणवत्ता वाले रेशम, साटन, वेलवेट, क्रेप डी चाइन। अत्यंत तंग-फिटिंग, उच्च मैंडरिन कॉलर, ऊँची साइड स्लिट्स, विस्तृत कढ़ाई और सजावट।
1950 के दशक (हांगकांग) कपास, रेयॉन, सिंथेटिक रेशम। थोड़ी कम फिटिंग, ज़िपर्स का उपयोग, अधिक व्यावहारिक, कम जटिल सजावट, विभिन्न आस्तीन।
आधुनिक (2000 के दशक-वर्तमान) रेशम, सिंथेटिक मिश्रण, डेनिम, चमड़ा, नए बुने हुए कपड़े। विभिन्न फिटिंग (तंग से ढीली), कॉलर, आस्तीन और हेमलाइन में विविधता, पश्चिमी फ़ैशन के साथ फ्यूज़न, नए प्रिंट और रंग।

चींगसम का विकास केवल एक परिधान का इतिहास नहीं है, बल्कि यह चीनी समाज के अपने आत्म-पहचान, आधुनिकता और वैश्विक दुनिया में अपनी जगह खोजने की यात्रा का एक दर्पण है। यह एक लचीला और परिवर्तनशील प्रतीक है, जो अतीत की सुंदरता को दर्शाता है और भविष्य की फ़ैशन संभावनाओं को गले लगाता है।

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